ज़िन्दगी से गुफ़्तगू – A Conversation With Life – Hindi Blog

हर साल जब जन्मदिन आता है तो बहुत सारी बातें और तरह तरह की यादें साथ लेकर आता है. सारी बातें और आधी अधूरी यादें आपको आपके और करीब ले जाती है, और इसी ज़िन्दगी से गुफ़्तगू को कभी हम retrospection कहते हैं तो कभी introspection.

इससे पहले की उस गुफ़्तगू को सार्वजानिक करूं, एक छोटी सी हिंदी कविता पुरानी यादों के नाम.

हिंदी कविता – यादें

जो मन आये लिख लो,
थोड़ा बना दो, फिर मिटा दो,
रंग दो, भीगा दो, फिर सूखा दो,
कभी जहाज बना हवा में उड़ा दो,
कभी नाव बना पानी में छोड़ दो,
कभी चिड़िया बना के लटका दो,
ऊब जाओ तो कतरा कतरा कर छतों से फेक दो,
गुस्सा आये तो फाड़ दो,
बहुत गुस्सा आये तो जला दो,
कुछ अच्छा बन जाये तो तकिये के नीचे सम्हाल लो.

बस ऐसे ही होती हैं,
सफ़ेद पन्नों सी,
बिना सलवटों वाली,
कोरी सी, सफ़ेद सी,
स्कूल के दिनों वाली,
हॉस्टल की रातों वाली,
पुराने दोस्तों वाली,
वो सारी की सारी यादें.
~~इति
~~हिमांशु "चहुंओर"

ज़िन्दगी से गुफ़्तगू

लगभग सभी ४० के आसपास हैं, कुछ दो साल आगे तो कुछ २- ३ साल पीछे.

परिपक्वता का पहला पड़ाव है ४०, असल वाली खरी परिपक्वता. Naughty in Forty भी है. गुमान, ग़रूर, खुदमिज़ाजी भी है ४० के ज़िक्र में.

बचपन के दोस्त, स्कूल वाले दोस्त, कॉलेज वाले भाई लोग, हॉस्टल वाले दिल के यार, सब आस पास ही हैं, अपनी अपनी कहानियां लिखते, अपने अपने किस्से बुनते. कुछ से बात होती है, कुछ से गुफ्तगू, कुछ का जिक्र होता है. कुछ हैं मौजूद, कुछ एकदम गायब हैं कोई नामोनिशान नहीं. कुछ किस्सों में अमर हैं, कुछ किस्सों के मुरीद तो कुछ किस्से बाज हैं.

कुछ पूर्णता पा चुके हैं, कुछ की तलाश अभी ज़िंदा है, कुछ भटक रहे हैं, कुछ सेटल्ड हैं तो कुछ को अभी भी goal post को shift करने में ही एक अलग आनंद की प्राप्ति होती है.

कुछ beach animal हैं, कुछ जंगल प्रेमी तो कुछ himalaya lovers. कुछ का अंग अंग रॉक में बस गया है तो कुछ अभी भी गुलज़ार वाले जगजीत और आवारगी वाले गुलाम अली में रमे हुए हैं. आज का अर्जित सिंह अच्छा लगता है लेकिन मन किशोर कुमार लता और आशा में ही बसता है, हां, कभी कभी कुमार सानू और उदित नारायण वाला ९० का दशक गुदगुदाता जरूर है.

कुछ खामोश से हो गए हैं, कुछ झुर्रियों को छुपा रहे हैं, कुछ रंग रहें है बालों को, कुछ फक्र से सफेदी को दिखा रहे हैं. कुछ के बच्चे कॉलेज जाने वाले हैं, कुछ के अभी हो रहे हैं, कुछ अपने बच्चो के साथ बच्चे बने हुए हैं.

जो कहानी राजा मंत्री चोर सिपाही से शुरू हुई हुई, फिर मारिओ , सुपर कमांडो ध्रुव, playstation से होते हुए avengers के बाद अब आईपीएल और एमपीएल के आस पास है.

जो भगवान के होने नहीं होने पर बहस करते थे, आज spirituality के किसी न किसी किस्से से बंधे हुए, अपने अपने कोनों पर मग्न हैं.

जो १-२ रूपए लिए सीना चौड़ा किये हाफ पेंट में घुमते थे, अब लाखों के पोर्टफोलियो पर भी सिर खुजा रहे हैं. कुछ फक्र में सराबोर हैं, तो कुछ फिक्र में.

लंबा वक्त तय हुआ है लेकिन अभी ज्यादा लंबा आगे खड़ा है. व्यस्तताएं सेटल हो रहीं हैं, पुरानी बातें जल्दी जल्दी याद आती हैं. साथ चले थे सब, अब कोई आगे तो कोई पीछे है, कोई उपर तो कोई नीचे है.

सबकी अपनीजेडअपनी बात हैं, अपने हिस्से की गलतियां और अपनीजेडअपनी वजहें. सब सही हैं, गलत कोई नहीं.

देख रहे हो विनोद, अभी भी absolute नहीं ज्यादा चीजें, black and white के बीच है सब कुछ. सीपिया सा या फिर अपना अपना tinted monochrome सा.

आखिर, यही है लेखा जोखा अब तक की ज़िन्दगी का, जो परिपक्वता ने अपने एवज़ में हमें बख़्शा है. इस जिंदगी की सिंगल एंट्री बुककीपिंग में सब एसेट है बाबू भैया. जो मिला वह एसेट, जो गवां दिया वह भी एसेट और इस सब के बीच की गयी हर कवायद सबसे बड़ा एसेट.

Leave a comment